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एक विश्वस्तरीय सामाजिक आर्थिक क्रांति (एम् . एम् .एम् )

एम् एम् एम् एक क्रांति है जो समाज के कल्याण और सामाजिक कार्य के
अंतर्गत आती है ! अगर में इसे अगर सामाजिक संस्था कहूं तो कोई गलत नहीं
होगा !

यहाँ बहुत सारे लोग अपने अपने विचार और सोच के आधार पर इसको अपनी अपनी
भाषा मे व्यक्त करते है !
कुछ अनजान लोग इसे निवेश समझते है ! खैर वो उनके स्वं विचार है !
क्युकी जिसके जीवन मै किसी दुसरे व्यक्ति के लिए सहयोग करने की भावना न
हो वो तो इसे निवेश के आधार पर ही लेगा
क्युकी ऐसे व्यक्ति अपने पेट के लिए ही सोचते है ! किसी दुसरे के लिए
क्या सोचेंगे , में ऐसे व्यक्तियों पर कोई टिप्पड़ी नहीं करना चाहूँगा !
यहाँ कुछ लोग ये शब्द का उपयोग करते है की कितना लगाने पर कितना मिलेगा !

तो भाइयो यहाँ लगाना ही नहीं है !
क्युकी यहाँ कोई पैसा नहीं लगता क्युकी यहाँ कोई कम्पनी ही नहीं है जहा
आपको लगाना है ! पैसा उस जगह लगाया जाता है जहाँ कोई कम्पनी होती है !
यहाँ तो सिर्फ आपको अपने भारतीय किसी अन्य भाई की मदद ही करनी है ! जिसने
मदद मांगी है और अगर कोई मदद मांग रहा है और उसे आप मदद दे रहे हो , तो
यहाँ पैसे लगाने की बात रही ही कहा !
अगर कोई पैसा लगाने की भावना से यहाँ आता है ! तो उस भाई से हाथ जोड़ कर
विनम्र निवेदन है कृपया यहाँ न आये और जहा पैसा लगता है पैसा लगाये यहाँ
कोई जबरदस्ती नहीं है ! जिसकी भावना में किसी व्यक्ति की मदद करने की
छमता है तो वो आये अन्यथा कोई दूसरा मार्ग पकडे ! क्युकी यहाँ न कोई
कम्पनी में पैसा लगाना है और न कोई आपको पैसा देगा !
अगर जिस प्रकार आपने किसी की मदद की और वक़्त पड़ने पर जब आपका समय पूरा
होता है ! उस समय आप भी मदद ले सकते हो अगर कोई मदद देने वाला होगा तो
आपको सिस्टम के अनुसार मदद मिलेगी और नहीं होगा तो आपको उस समय का इंतजार
करना पड़ेगा जब कोई मदद देने वाला आयेगा और अगर नहीं आया तो कोई
जिम्मेदारी नहीं है ! क्युकी यहाँ कोई कम्पनी नहीं है !

सेर्गे मव्रोडी का सपना :-

सर्गे मव्रोड़ी एक अर्थशाष्त्री की सोच के अनुसार उस बिंदु को देख रहे है
जो इन्सान की सबसे बड़ी कमजोरी है वो है लालच और आज हर इन्सान लालच में
चूर है एक जमाना ऐसा था जब इन्सान को धुरी माना जाता था ! और पैसा इन्सान
के आगे पीछे चलता था ! उस ज़माने में इंसानियत थी , पैसे को मुख्यता नहीं
दी जाती थी और भाईचारा इतना था की इन्सान एक दुसरे की मदद दिल से करता था
! व्याज पर पैसा देकर नहीं लेकिन आज के ज़माने में धुरी इन्सान नहीं रहा
है बल्कि पैसा धुरी बन गया है ! अप इन्सान के चक्कर पैसा नहीं बल्कि
इन्सान पैसे के चक्कर लगा रहा है !
और सर्गे मव्रोड़ी का कहना है की इसका कारन अमेरिका की नीति और उसका
पिरामिड है ! जो इस प्रकार बनाया गया है ! जिससे धीरे धीरे गरीब गरीब
होता जायेगा और अमीर अमीर होता जायेगा , और एक दिन इंसानियत नाम मिट
जायेगा
और कोई किसी की मदद नहीं करेगा पैसे के सामने जिसके अंश आज आप लोग को दिख
ही रहे होंगे .
हम लोगो को अभी सेर्गे मव्रोड़ी की बताइए शायद समझ में न आये लेकिन वक़्त
परिवर्तन के साथ बहुत कुछ समझ में आयेगा और बहुत कुछ सीखने को मिलेगा
अमेरिका के पिरामिड से भी पिरामिड होता था ! श्री राम चन्द्र जी के राम
राज्य का , श्री कृष्णा जी के राज्य का लेकिन उस समय लोग गरीब नहीं हुया
करते थे अगर कुछ गरीब होते थे तो लोग आपस में मिलकर उसका सहयोग करके उसे
धनवान बनाने में लग जाते थे ! जैसे श्री कृष्णा जी ने सुदामा का सहयोग
किया था ! लेकिन आज कोन लाखो सुदामा का सहयोग करेगा ! इसका कारन लालच है
! जिसकी वजह से किसी पर तो इतना पैसा है की जीवन भर उपयोग ही नहीं कर
सकता और किसी पर इतना कम के उसको अपने और अपने परिवार के पेट भरने के लिए
दौड़ धुप करके रोज कमाना पड़ता है ! और रोज खाना पड़ता है ! भविष्य उन
लोगो को सोचने का न समय होता है और न पैसा होता है !

जिस व्यक्ति को रक्त की आवश्यकता है उसे रक्त दे
और बहुत सरे सामाजिक कार्यो के अंतर गत आपका ये सामाजिक सिस्टम कार्यरत
रहेगा जो इसका मुख्या उद्देश्य है !
में चाहूँगा इस सिस्टम को आन्तरिक धरना से समझे और लोगो को इसका सही रूप
समझाये , कोई गलत बात कहकर इस सामाजिक संस्था में न लाये ! क्युकी यहाँ
कोई इन्वेस्टमेंट नहीं है !तो सेर्गे मव्रोदी जी चाहते है जहा ज्यादा पैसा है और जहा बिलकुल नहीं
यानि जहा ज्यादा पानी है ! और जहा बिलकुल पानी नहीं उसके बीच में एक ऐसी
नहर बनायीं जाये जिससे सबको लाभ हो ! और जिस दिन ये कार्य पूरा होगा उस
दिन देश का हर इन्सान आर्थिक स्थिति में बहुत मजबूत होगा ! और ऐसा होने
से क्या होगा जानते हो , अर्थशास्त्र का एक नियम है ! इस देश के लोग धन
धान्य होते है उस देश की अर्थ व्यवस्था बहुत ही मजबूत होती है ! जैसे आज
अमेरिका इसी लिये उसे आज के समय का विश्वगुरु कहा जाता है !
एक समय ऐसा था जब हमारा भारत विश्व गुरु था और सोने की चिड़िया कहलाया
जाता था ! लेकिन अब हमें सोने की चिड़िया नहीं बल्कि सोने का शेर बनना है
! जो हमारी दहाड़ से भाग जाये और दोबारा आने की जरूरत न करे

में चाहूँगा सर्गे मव्रोड़ी जी का जो सपना जो मुहीम है ! उसे उसी प्रकार
ले और इस विश्वस्तरीय क्रांति में आन्तरिक भाग ले क्युकी बहुत ही जल्द हम
लोगो के लालच का अंत होने वाला है !..........................!!!
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Abhishek Anand

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ABHISHEK ANAND